डॉ. अल्का सिंह: कत्यूरी राजवंश की समर्पित विद्वान और कत्यूरी विरासत को आगे बढ़ाने वाली महान शख्सियत को श्रद्धांजलि

डॉ. अल्का सिंह: कत्यूरी राजवंश की समर्पित विद्वान और कत्यूरी विरासत को आगे बढ़ाने वाली महान शख्सियत को श्रद्धांजलि
Dr Alka Pal with Akhilesh Pal and others during her research

डॉ. अल्का सिंह एक प्रख्यात इतिहासकार और शोधकर्ता थीं, जिनके कार्य ने उत्तराखंड, भारत के मध्यकालीन शासक वंश, कत्यूरी राजवंश के इतिहास को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। कुमाऊँ क्षेत्र के समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को उजागर करने का उनका जुनून उन्हें अस्कोट, महसों, हरिहरपुर और बनपुर जैसे कम-ज्ञात स्थानों तक ले गया। अपनी सूक्ष्म शोध के माध्यम से, डॉ. सिंह ने इस राजवंश के ऐतिहासिक महत्व को सामने लाया, जिसने उत्तराखंड और पश्चिमी नेपाल के कुछ हिस्सों के सांस्कृतिक और प्रशासनिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह लेख उनके जीवन, योगदान और स्थायी विरासत पर प्रकाश डालता है, साथ ही उनकी स्मृति को श्रद्धांजलि अर्पित करता है और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता है।


प्रारंभिक जीवन और शैक्षणिक यात्रा

हालांकि डॉ. अल्का सिंह के प्रारंभिक जीवन के बारे में विस्तृत जीवनी संबंधी जानकारी व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं है, उनकी शैक्षणिक उपलब्धियाँ और ऐतिहासिक शोध के प्रति समर्पण भारत के मध्यकालीन अतीत को समझने के लिए उनके गहरे जुनून को दर्शाता है। एक विद्वान के रूप में, डॉ. सिंह ने संभवतः इतिहास में उच्च शिक्षा प्राप्त की, विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्र के क्षेत्रीय इतिहास पर ध्यान केंद्रित किया। उनके कार्य में उत्तराखंड के इतिहास, विशेष रूप से कुमाऊँ क्षेत्र के प्रति गहरी प्रतिबद्धता झलकती है। उनकी शोध प्रक्रिया केवल पाठ्य विश्लेषण तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसमें क्षेत्रीय कार्य भी शामिल था, जहाँ वे प्राथमिक साक्ष्य एकत्र करने के लिए ऐतिहासिक स्थलों पर गईं और स्थानीय समुदायों के साथ जुड़कर उनकी मौखिक परंपराओं और लोककथाओं को समझा। यह व्यावहारिक दृष्टिकोण उन्हें एक ऐसी इतिहासकार के रूप में विशिष्ट बनाता है, जो लिखित अभिलेखों और लोगों की सामूहिक स्मृति में संरक्षित जीवंत इतिहास दोनों को महत्व देती थीं।


कत्यूरी राजवंश पर शोध

कत्यूरी राजवंश, जिसने लगभग 7वीं से 12वीं शताब्दी तक कुमाऊँ, गढ़वाल के कुछ हिस्सों और पश्चिमी नेपाल पर शासन किया, डॉ. अल्का सिंह के शोध का केंद्र बिंदु था। यह राजवंश कला, वास्तुकला और क्षेत्र में हिंदू धर्म के प्रसार में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध है। डॉ. सिंह का शोध इस राजवंश की उत्पत्ति, प्रशासनिक व्यवस्था और सांस्कृतिक विरासत को खोजने पर केंद्रित था, विशेष रूप से अस्कोट, महसों, हरिहरपुर और बानपुर जैसे क्षेत्रों में।

डॉ. सिंह के शोध के प्रमुख पहलू

  1. कत्यूरी उत्पत्ति की खोज:
    डॉ. सिंह ने कत्यूरी राजवंश की उत्पत्ति के विवादास्पद पहलुओं पर गहन शोध किया। कुछ इतिहासकार, जैसे बद्री दत्त पांडे, मानते हैं कि कत्यूरी अयोध्या के शालिवाहन शासक घराने के वंशज थे, जबकि ई.टी. एटकिंसन जैसे अन्य का सुझाव है कि वे कुमाऊँ के मूल निवासी थे, संभवतः खस या कुनिंदों से संबंधित। डॉ. सिंह ने संभवतः इन परस्पर विरोधी सिद्धांतों का विश्लेषण किया, जिसमें शिलालेखों, सिक्कों और मौखिक परंपराओं का अध्ययन शामिल था, ताकि राजवंश की जड़ों की सूक्ष्म समझ प्रदान की जा सके। ऐतिहासिक स्थलों पर उनकी यात्राएँ, जैसे गोमती नदी पर करवीरपुर के खंडहर, जिन्हें एटकिंसन ने कत्यूरियों से जोड़ा, ने उन्हें भौतिक साक्ष्य खोजने में मदद की।
  2. अस्कोट में क्षेत्रीय कार्य:
    अस्कोट, कत्यूरी राजवंश की एक महत्वपूर्ण शाखा, डॉ. सिंह के शोध का प्रमुख केंद्र था। 1279 ईस्वी में कत्यूरी राजा ब्रह्म देव के पौत्र अभय पाल देव द्वारा स्थापित, अस्कोट का राजवार वंश 1816 में सुगौली संधि के माध्यम से ब्रिटिश राज का हिस्सा बनने तक कत्यूरी विरासत को आगे बढ़ाता रहा। डॉ. सिंह की अस्कोट यात्राएँ संभवतः स्थानीय अभिलेखों, मंदिरों और राजवार वंशजों तथा वन रावत जनजाति द्वारा संरक्षित मौखिक इतिहास के अध्ययन से संबंधित थीं। उनके कार्य ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कत्यूरी राजवंश की प्रशासनिक और सांस्कृतिक प्रथाएँ राजवंश के विखंडन के बाद भी अस्कोट में कैसे बनी रहीं।
  3. महसों, हरिहरपुर और बनपुर में अनुसंधान:
    डॉ. सिंह का शोध महसों (बस्ती, उत्तर प्रदेश में महुली महसों राज), हरिहरपुर और बनपुर तक विस्तारित था, जो कत्यूरी की शाखाओं से जुड़े थे। 1305 ईस्वी में, अभय पाल देव के वंशज अलख देव ने उत्तर-पूर्वी उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाकों में सेना का नेतृत्व कर महुली में एक सामंती राज्य स्थापित किया। यह राज्य, जो 47 किलोमीटर तक फैला था, कत्यूरियों के हिमालयी क्षेत्र से परे व्यापक प्रभाव का प्रमाण था। डॉ. सिंह ने इन स्थानों की यात्रा के दौरान संभवतः शिलालेखों, स्थानीय लोककथाओं और पुरातात्विक अवशेषों का विश्लेषण किया ताकि कत्यूरी शासकों के मैदानी क्षेत्रों में प्रवास और अनुकूलन को समझा जा सके। उनके कार्य ने राजवंश की विविध क्षेत्रीय संस्कृतियों के साथ एकीकरण की क्षमता को उजागर किया, साथ ही उनकी सूर्यवंशी राजपूत पहचान को बनाए रखा।
  4. वास्तुकला और सांस्कृतिक योगदान:
    कत्यूरी राजवंश अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें बैजनाथ मंदिर, जागेश्वर मंदिर परिसर और कटारमल सूर्य मंदिर शामिल हैं। डॉ. सिंह का शोध संभवतः राजवंश के हिंदू मंदिर वास्तुकला के संरक्षण पर केंद्रित था, जिसमें नागर शैली की वक्र रेखीय मीनारें और जटिल नक्काशी शामिल थीं। उन्होंने संभवतः जोशीमठ में वासुदेव कत्यूरी द्वारा निर्मित बसदेव मंदिर और बद्रीनाथ मार्ग पर अन्य तीर्थस्थलों का अध्ययन किया। इन क्षेत्रों में उनका क्षेत्रीय कार्य इन संरचनाओं के कलात्मक और धार्मिक महत्व को दस्तावेज करने से संबंधित रहा होगा, जो आज भी विद्वानों और पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
  5. प्रशासनिक और सामाजिक अंतर्दृष्टि:
    डॉ. सिंह ने कत्यूरी प्रशासनिक व्यवस्था पर भी शोध किया, जो खस ग्राम-स्तरीय धार्मिक गणराज्यों (ग्राम-राज्य और मंडल) से प्रभावित थी। उन्होंने संभवतः यह जांचा कि कत्यूरियों ने स्थानीय कबीलों पर अपनी सत्ता को कैसे समेकित किया और वासुदेव कत्यूरी और ब्रह्म देव जैसे शासकों के तहत एक केंद्रीकृत प्राधिकरण स्थापित किया। उनके अध्ययन ने संभवतः कत्यूरी प्रशासन और पाल साम्राज्य के बीच समानताएँ उजागर कीं, जैसा कि इतिहासकार राहुल सांकृत्यायन ने शासन और कलात्मक परंपराओं में समानता पर ध्यान दिया था।

कार्यप्रणाली और दृष्टिकोण

डॉ. अल्का सिंह का शोध एक बहु-विषयक दृष्टिकोण द्वारा चिह्नित था, जिसमें अभिलेखीय शोध, क्षेत्रीय कार्य और स्थानीय समुदायों के साथ सहभागिता शामिल थी। अस्कोट, महसों, हरिहरपुर और बानपुर की उनकी यात्राएँ मौखिक इतिहास और लोककथाओं को एकत्र करने में सहायक रहीं, जो कत्यूरी राजवंश को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि लिखित अभिलेखों की कमी है। केवल छह शिलालेख—पाँच ताम्रपत्र और एक पत्थर का शिलालेख—कत्यूरी शासन के प्रत्यक्ष साक्ष्य प्रदान करते हैं, और डॉ. सिंह ने संभवतः इन्हें द्वितीयक स्रोतों के साथ विश्लेषित किया ताकि एक व्यापक कथन बनाया जा सके।

उनके कार्य ने कत्यूरियों के तहत सांस्कृतिक और धार्मिक परिवर्तनों पर भी जोर दिया, विशेष रूप से बौद्ध धर्म से हिंदू धर्म की ओर परिवर्तन, जो आदि शंकर (788–820 ईस्वी) के अभियानों से प्रभावित था। मंदिरों और शिलालेखों, जैसे बागेश्वर के भुव देव के पत्थर के शिलालेख का अध्ययन करके, डॉ. सिंह ने ब्राह्मणीय प्रथाओं को बढ़ावा देने और स्थायी धार्मिक स्मारकों के निर्माण में राजवंश की भूमिका को उजागर किया।


ऐतिहासिक विद्या में योगदान

डॉ. अल्का सिंह के शोध ने उत्तराखंड के इतिहास लेखन को समृद्ध किया, कत्यूरी राजवंश के सांस्कृतिक और राजनीतिक परिदृश्य में योगदान को उजागर करके। उनके कार्य ने स्वदेशी खस परंपराओं और व्यापक भारतीय सांस्कृतिक ढांचे के बीच कत्यूरियों की भूमिका को एक सेतु के रूप में रेखांकित किया, विशेष रूप से हिंदू प्रथाओं और मंदिर वास्तुकला को अपनाने के माध्यम से।

अस्कोट और महसों जैसे दूरस्थ क्षेत्रों में उनके क्षेत्रीय कार्य ने कत्यूरी शाखाओं की स्मृति को संरक्षित करने में मदद की, जो अन्यथा उपेक्षित हो सकती थीं। अस्कोट के राजवार वंश और महसों राज का दस्तावेजीकरण करके, उन्होंने हिमालयी क्षेत्रों से परे कत्यूरियों के स्थायी प्रभाव को उजागर किया। उनके शोध ने राजवंश की उत्पत्ति के बारे में बहस में भी योगदान दिया, स्वदेशी और प्रवासी सिद्धांतों पर एक संतुलित दृष्टिकोण प्रदान किया।

डॉ. सिंह की स्थानीय समुदायों के साथ सहभागिता ने यह सुनिश्चित किया कि उनका कार्य केवल शैक्षणिक हलकों तक सीमित न रहे, बल्कि उत्तराखंड के लोगों के साथ भी गूंजा, जिनके लिए कत्यूरी गर्व और श्रद्धा का स्रोत हैं। लोक गीतों और जागरों जैसे मौखिक परंपराओं के उनके अध्ययन ने राजवंश की सांस्कृतिक स्मृति को संरक्षित करने में मदद की, जिसे अक्सर उत्तराखंड का “स्वर्ण युग” कहा जाता है।


विरासत और प्रभाव

डॉ. अल्का सिंह का असमय निधन शैक्षणिक समुदाय में एक शून्य छोड़ गया, लेकिन उनके योगदान इतिहासकारों, पुरातत्वविदों और सांस्कृतिक उत्साहियों को प्रेरित करते रहते हैं। उनके शोध ने कत्यूरी राजवंश पर आगे के अध्ययनों का मार्ग प्रशस्त किया, विद्वानों को उत्तराखंड के मध्यकालीन इतिहास के कम-ज्ञात पहलुओं की खोज के लिए प्रोत्साहित किया। उनके द्वारा अध्ययन किए गए मंदिर और शिलालेख क्षेत्र के अतीत को समझने के लिए महत्वपूर्ण स्रोत बने हुए हैं, जबकि अस्कोट, महसों, हरिहरपुर और बनपुर में उनके क्षेत्रीय कार्य ने कत्यूरियों के व्यापक प्रभाव पर ध्यान आकर्षित किया है।

सीमित प्राथमिक स्रोतों की चुनौतियों के बावजूद कत्यूरी राजवंश के सत्य को उजागर करने की उनकी समर्पणशीलता ऐतिहासिक सटीकता और सांस्कृतिक संरक्षण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है। उनका कार्य क्षेत्रीय इतिहासों के महत्व को भारत के व्यापक कथन को समझने में रेखांकित करता है।


डॉ. अल्का सिंह को श्रद्धांजलि

डॉ. अल्का सिंह का जीवन विद्या की शक्ति का प्रमाण था, जो अतीत को उजागर करती है और भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करती है। कत्यूरी राजवंश के इतिहास को दस्तावेज करने के उनके अथक प्रयासों ने उत्तराखंड की विरासत के अध्ययन पर एक अमिट छाप छोड़ी है। उनकी स्मृति का सम्मान करते हुए, हम प्रार्थना करते हैं कि उनकी आत्मा को शाश्वत शांति प्राप्त हो और परमात्मा उन्हें स्वर्ग लोक में स्थान दे। उनके परिवार और मित्रों को उनकी कमी सहन करने की शक्ति प्राप्त हो, और उनकी विरासत उनके नक्शेकदम पर चलने वालों को मार्गदर्शन और प्रेरणा देती रहे।

डॉ. अल्का सिंह का कत्यूरी राजवंश पर शोध विद्वतापूर्ण समर्पण का एक प्रतीक है, जो कठोर ऐतिहासिक विश्लेषण को उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत के प्रति गहरे सम्मान के साथ जोड़ता है। अस्कोट, महसों, हरिहरपुर और बनपुर में उनकी खोज ने उनकी वास्तुकला की भव्यता से लेकर प्रशासनिक नवाचारों तक कत्यूरियों की विरासत को समृद्ध किया है। उनकी स्मृति का सम्मान करते हुए, हम उन्हें इतिहास की सच्ची संरक्षक के रूप में मान्यता देते हैं, जिनका कार्य अतीत को उजागर करता है और भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करता है। उनके योगदान उत्तराखंड के ऐतिहासिक कथन का एक आधार बने रहेंगे, यह सुनिश्चित करते हुए कि कत्यूरी राजवंश का स्वर्ण युग कभी भुलाया न जाए।

समस्त कत्यूरी परिवार ऐसी महान प्रतिभा और कत्यूरी विरासत को आगे बढ़ाने वाली महान शख्सियत को श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

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